UnxploreDimensions...
Monday, February 16, 2015
यह बुझती रंगीनियाँ ...
तुम्हारे भेजे हुए गुलाब
रखें हैं सिरहाने मेरे
हर पंखुरी से रिस्ता
दूरी का सीसा
महकाता हैं हर सांस
विसाल ऐ एहसास
हर रंग में ढले हैं
बेहिस जज़्बात
हर करवट में लिपटे
बेखुदी से तर
तुम्हारे अलफ़ाज़
ढून्ढ रही हूँ बेलौस सी
अल्हड सरगोशियाँ
आओगे न तुम
बुझने से पहले, यह रंगीनियां ?
Monday, March 24, 2014
बेतुका ...
तन्हाई - बेरुखी
हिज्र - मुक़द्दर
विसाल - हसरत
दर्द - लौ
टीस - चुभन
चांदनी - ख़ाक
दीवानी - बेसुध
चश्म-ए -नम - खिलखिलाहट
Sunday, June 23, 2013
चहलकदमी...
चुप चाप सीने में
चहलकदमी करती हैं
हर आहट पे
सिहर सी जाती है ...
किस बात का खौफ
इस कदर है चस्पा ...
मुस्कुराती हैं तो
डर की परचाहियाँ
उसे भी स्याह कर जाती हैं ...
दिल की खिड़कियाँ खोलने में
अब होती है दिक्कत ..
की जाने कब कहाँ से
कमबख्त हवा भी
हो जाए मुख्बिर…
ख़ुलूस की पेशानी पे
अब संजीदा शबनम चमकती है ...
लगे हैं खोने .....
कुछ नए अफसाने ...
कुछ नए उल्हाने ...
उलझनों के ये कैसे
ताने बाने…
सिरे उल्हास के
हैं छूटते जाते
उम्मीद की हथेलियों
में भरने लगते
अजनबी पसीने ...
ख्वोअबों के रंग अब
लगे हैं खोने ...
Monday, October 01, 2012
फिर क्यूँ रह जाते तुम अलोने से ?
बातों के, आदतों के...मंशाओं के,
पहचानना है इस कदर मुश्किल
लबालब तो है ये
नमकीन सा दरिया
फिर क्यूँ रह जाते तुम अलोने से ?
मन की सीली चादर में
अछूते से
Wednesday, March 16, 2011
बस इक चुप ...
अल्फाजों के आर पार
हौसलों पे शिकन
फ़ैल चली
दूर तक पारावार
सीने में हुलस्ती
नर्म, नाज़ुक सी कोई उम्मीद
बैठ गयी... छोड़ पतवार
Wednesday, June 16, 2010
किश्तों में तक्सीम होती "मैं".....
दरमियान फ़ैल गयी
"मेरे - तुम्हारे" के बेमानी आयाम
बेवजह खींच गयी
भीतर गहरे कहीं जडें जमाते ,
भरभराते हौसले ...
सिहरते मुस्तकबिल की पेशानी पर
चमकती बेचैन रातें ...
दिन के उजाले को स्याह करते अल्फाज़
जो लबों पर हैं सदियों से जमे ...
मुक्कमल तार्रुफ़ की आस में तड़पती
रिश्तों की बानगी
अनगिनत टुकड़ों में बँटे जज़्बात
और कहीं किश्तों में तक्सीम होती "मैं"...
Monday, May 24, 2010
इंतज़ार है... तुम्हारा ...
सिर्फ तुम्हारे ख्याल की ऊँगली थाम
रात के आँगन में
तुम्हारे एहसास में नहाती मैं ....
इंतज़ार है ...
गुलमोहर से खिलते उस समां का
शहद से भीगी उन किरणों का
इंतज़ार है ...
चटक जाए हर कली जिसमें
उस सेहर का
इंतज़ार है ...
लम्हा लम्हा भिगोती शबनम का
बेलौस बरसती बारिश का
इंतज़ार है ...
बेपरवाह उड़ते बालों को
संवारती उस इश्किया हवा का
फिर से जागती हूँ उस
मुक्कदस आरजूओं से सराबोर
मोहब्बत के मौसम में ...
इंतज़ार करती तुम्हारा ...
तुम, जो ले आओगे
ये सब कुछ
एक बार फिर से ...
भर दोगे ज़िंदगी में
मेरे, तेरे से आगे
"हम्हारे" विसाल का सुरमई रंग
Sunday, May 23, 2010
तेरी चाहत की चांदनी ...
जज्बातों के दहकते जंगल
तेरे मेरे साथ से
जिंदगानी हो गयी मुक्कमल
गुनगुनाते , खिलखिलाते
ख़्वाबों का आसमान ने
ओढ लिया रंग सुर्ख गहरा
तेरी मौजूदगी की बयार ने
महका दिया मन के आँगन का हर कोना
तेरी चाहत की चांदनी से अब
हो गयी मेरी तकदीर रोशन
की बस अब
तुझ ही से खिल गयी
हर उम्मीद की बेकल चितवन
Monday, April 12, 2010
नशा ...
तुम्हारी बातों का
हुलस्ती इच्छाओं का
मेरे तुम्हारे दरमियान
सिमटे अनकहे लफ़्ज़ों का
नशा ...
तुम्हारी साँसों की खुशबू का
ठन्डी छुअन का
लरजती उँगलियों का
नशा ...
जो मर कर जीया
उस पल का
जो गुज़र के भी नहीं गुज़रा
उस लम्हे का...
नशा ...
मुझको जो पूरा कर गया
उस तारुफ्फ़ का
मुक्कमल बना गया
जो हर अरमान
उस अनदेखे साथ का
नशा ...
परत दर परत
सांस लेते अरमानो का
खामोश बेखुदी का
नशा ....
जिस्म को आर पार काटती निगाह का
सिर्फ तुम्हारे होने के उस एक एहसास का
नशा ...
अब जो जीने की वजह बन गया
Saturday, April 10, 2010
एक बार फिर ...
अपना सा लगता है
जहाँ भी लगे धरती पर झुकता
ज़िन्दगी का पूरा सच लगता है
मन के सीले अंधेरों को जगमगाती
उमीदों की चमकीली रौशनी
क्यूँ सुर्ख हो जाती सपनो की
बदरंग दुनिया अनोखी
सिर्फ इक हंसी की झड़ी
कर देती ...
एहसासों की ज़मीं गीली
इक नया अरमां होने लगता
हर पल पर काबिज़
क्यूँ हो जाता एक बार फिर से एतबार
हो कर दिल से आजिज़ ...
Wednesday, March 31, 2010
सवाल सिरफिरा सा...
बेलगाम मोहब्बतें
क्या वाकई होती है अलेहदा ?
पिघलती, सिमटती ...
यादों की चिलमन के परे
ज़ेहन में रिसते हैं
वक़्त के हमशक्ल बेनाम कतरे
सफहा सफहा जिंदा सा लगता है
हर जज्बा एक सा ही तो लगता है
पर...
मोहब्बत तो शायद सिर्फ एक बार ही होती है
चाहतों का क्या है ...
हर पल, हर पहर
गर्म जज्बातों का मुल्लमा चढ़ाये
यकबयक टकरा ही जाती है
आज फिर वो ही पुराना मसला है
दबा, सिसका, थमा सा सिलसिला है
सिर्फ चाहत है या ये है मोहब्बत
सवाल सिरफिरा सा
ज़िन्दगी के आईने में
मुंह बाए खड़ा है ...
Thursday, March 25, 2010
जानी पहचानी तलाश ...
हर सुनहरी सी सुबह में, फ़ैल जाता है
और गुनगुनी सी सांसें फिर से
प्यार की ठंडी छांह तलाशने लग जाती है ...
अपनी ही उमीदों की उंगलियाँ
मुस्तकबिल सिहरा देती है
और तमन्नाओ की मसहरी लगा ज़िन्दगी
एक अजीब से नशे में डूबी रहती है ...
अच्छी भी और बुरी भी ...
खुद से झूझती, बेपरवाह पलों की लडियां
बस गुज़रती नहीं .......
वक़्त के गलियारे आबाद करती
तन्हाई के स्याह रंग में सजा जाती है ...
Saturday, February 20, 2010
और इश्क बढ़ता रहा ...
उम्र नीचे सदियों से बहती रही
बूंदों से मिटटी का इश्क बढ़ता रहा
और मैं सोंधे से जिस्म को समेटे
आहटों की खलिश महसूस करती रही
खुली आँखें जज्बों का तलिस्म सजाती रही
और उम्मीद की महफ़िल में ...
सुनहरे मुस्तकब्बिल की ताबीर होती रही
सहमा सा मेरा आसमान ख़ामोशी से गूंजता रहा
और मैं बालिश्तों से ज़िन्दगी नापती रही ...
Saturday, February 13, 2010
तुम, जो ऐसा करते हो तो ....
बेपरवाह से जवाब ...
एक ठंडी सी दूरी ....
बनाते तुम , जो ऐसा करते हो तो
मन में उभरते जज्बे
सिहर से जाते हें
उजली सी चाहतें
घबराहट की स्याही ओढ़
तन्हाई की गोद में दुबक जाती है
बेवजह उलज्हन दबे पाँव
सपनो की क्यारी रौंदती
जबरन कहीं से आ ही जाती है
फिर तुम, जो ऐसा करते हो
कि सिर्फ एक मीठे बोल से
मेरा हाँथ पकड़
सुर्ख रास्तों पर ले चलते हो
और महज़ एक बोल की रेशम डोर
सभी खौफ, सभी उलझन परे रख
मेरी तुम्हारी सांसें बाँध
एतबार के नए मकाम तलाशने चल देती है