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Wednesday, March 16, 2011

बस इक चुप ...

बस इक चुप
अल्फाजों के आर पार
हौसलों पे शिकन
फ़ैल चली
दूर तक पारावार
सीने में हुलस्ती
नर्म, नाज़ुक सी कोई उम्मीद
बैठ गयी... छोड़ पतवार 
posted by Reetika at 3/16/2011 03:17:00 AM

6 Comments:

kamaal karte ho reetika ji..
kitni deep thought ko aapne kalam ke raaste kaagaz pe utaara hai...

aafareen!!

March 16, 2011 12:02 PM  

bahut achhi abhivyakti

March 16, 2011 12:25 PM  

रीतिका जी, बहुत कम शब्दों में आप बहुत कूछ कह गयीं--बेहतरीन अभिव्यक्ति---और इधर बहुत लंबे समय के बाद आपकी रचना पढ़ने का मौका मिला---उम्मीद है निरन्तरता बनाये रखेंगी।

March 17, 2011 12:54 AM  

साहित्य सृजन में नियमितता बनी रहे तो साहित्य आनंद दायक भी है और ईश आराधना भी

June 10, 2011 10:18 PM  

सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति.

July 05, 2011 3:50 AM  

सार्थक सृजन , बधाई.

कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें , आभारी होऊंगा.

September 17, 2012 10:12 AM  

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