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Monday, September 07, 2009

क्यूँ ?

जानती हूँ की नही आना है तुम्हे
जानती हूँ की नही जुड़ना है तुम्हे
नही है तुम्हे किसी किस्म की ख्वाहिश
नही है तुम्हे मिलने की आसयिश
कोई ज़रूरत नही
कोई हसरत नही
न ही बाकी कोईभी कशिश
फ़िर भी क्यूँ
कर बैठी हूँ प्यार तुमसे इतना
रातों का हर पहर गहरा
दिनों का हर लम्हा कसैला
दिल में क्यूँ एक लौ फडफडाती है
जिसमें मेरी एक आस ही क्या
ज़िन्दगी भी अब तो चुकने को आती है ....
posted by Reetika at 9/07/2009 11:51:00 AM 20 comments

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