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Monday, February 16, 2015

यह बुझती रंगीनियाँ ...


तुम्हारे भेजे हुए गुलाब 
रखें हैं सिरहाने मेरे 
 हर पंखुरी से रिस्ता 
दूरी का सीसा
महकाता  हैं  हर सांस
विसाल ऐ एहसास 
हर रंग में ढले हैं 
बेहिस  जज़्बात 
हर करवट में लिपटे 
बेखुदी से तर 
तुम्हारे अलफ़ाज़ 
ढून्ढ रही हूँ बेलौस सी 
 अल्हड सरगोशियाँ 
आओगे न तुम 
बुझने से पहले, यह रंगीनियां ?

posted by Reetika at 2/16/2015 11:59:00 PM 6 comments

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