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Monday, October 01, 2012

फिर क्यूँ रह जाते तुम अलोने से ?

कैसे सिफर होने लगा सब
दो रंगों  में दुनिया समिटने लगी अब

बातों के, आदतों के...मंशाओं के,
सभी के मायने लगे हैं बदलने  
कहीं न जो थी  पायी  जाती 
खुलने लगी है  वो बेचैन  परतें 
 
मन की बातें .. डरी, सहमी
दुबक जाती कहीं
इस मंज़र को
पहचानना है इस कदर मुश्किल

लबालब तो है ये
नमकीन सा दरिया
फिर क्यूँ रह जाते तुम अलोने से ?
मन की सीली चादर में
अछूते से
posted by Reetika at 10/01/2012 12:12:00 AM

5 Comments:

beautiful....

October 01, 2012 1:26 PM  

har rachnaa zindagi ko sochti hai

November 09, 2012 9:11 PM  

@ Surendra - maafi chahti hoon..bahut din baad apna blog khola... shukriya zarranawazi ka..

June 23, 2013 1:52 AM  

@Rashmi prabha - Shukriya..

June 23, 2013 1:53 AM  

अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

June 25, 2013 6:42 PM  

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