UnxploreDimensions...
Friday, November 28, 2008
ज़रा एक पल को ठहर तो सही ...........
क्यूँ भाग रही बेलगाम ..........
सपनो में चमकती उम्मीद एक फिर से नई
ऐ बेखबर जरा रुक तो सही,
बहक न जा यूँ बेखुदी में कहीं .............
ये वक्त तेरा है , पहले कर ले यकीन....
चंद लम्हों में सिमटी ,
सिर्फ़ खैरात की ना हो खुशी....
हो एक मुस्कराहट पे फ़िदा,
तकदीर चल पड़े फिर से कोई चाल नई ...........
Tuesday, November 18, 2008
यहीं कहीं..........
या पेशानी पर पड़ते बल में हो कहीं,
दिल के महकते कोने में कहीं,
जेहन में उमड़ते बादलों से झांकते तो नही,
बदन पे महसूस होती सिहरन में कहीं,
आंखों के पानी में छलकते तो नही,
लबो पर रुकी मुस्कराहट में कहीं,
एक अहसान से जमे इस अधूरे लम्हे में ,
ढूँढ रही हूँ एक अरसे से तुम्हे यहीं कहीं.............
सिर्फ़ एक अदद हँसी उसकी.........
यह दिन कुछ पाने के हैं......
घुलती है मिश्री सी कानो में कोई .........
आहटें सुनायी देती है , वक्त की हथेलियों पे कहीं.........
लम्हों के कतरे में चमकता है अक्स कोई ..........
उम्मीद की चिंगारियों जल जाती है कहीं..........
सिर्फ़ एक अदद हँसी उसकी, मुक्कमल कर देती ज़िन्दगी कोई......
Sunday, November 16, 2008
बाकी है कुछ निशाँ............
सपनो से आज भी राबता रखने की कोशिश है
उमीदों की निगाहों के बाकी हैं कुछ निशाँ ....
चाहतों के फूलों में बसते है खुशबू के आशियाँ ....
नज़रों से होंटों तक अरमानों के गुलिस्ताँ,
मर्मरी अल्फाजों में गुम, तस्सवुर की छूअन जवाँ........
लबों तक आते रहे जो, हसरतों के कारवाँ ...............
शामिल उनमें मेरे मन के मौसम दरमियाँ .............
जज्बों ने रंग दिए ख़्वाबों के नए आसमाँ ...............
समझ के दायरों के आगे...........
हथेलियों में ढूँढती उसको , मन से बड़े.......
अलसाई सी आंखों से, देखती मुस्तकबिल संवरते.........
सदियों के फासले पे बैठा वो,
पढ़ लेता दिल के सफ्हे अनलिखे...........
चंद रोज़ पहले ही तो रु-ब-रु हुई ज़िन्दगी उस से
और शामिल कर लिए उम्र भर के काफिले उसने..............
तकदीर के खेल का हिस्सा बन, बचपना करने को जी करता है
जब समझ के दायरों के आगे, मासूम चाहतों का मेला सा लग जाता है..........