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Sunday, November 16, 2008

समझ के दायरों के आगे...........

कह गया वो बिन कुछ कहे
हथेलियों में ढूँढती उसको , मन से बड़े.......
अलसाई सी आंखों से, देखती मुस्तकबिल संवरते.........
सदियों के फासले पे बैठा वो,
पढ़ लेता दिल के सफ्हे अनलिखे...........
चंद रोज़ पहले ही तो रु-ब-रु हुई ज़िन्दगी उस से
और शामिल कर लिए उम्र भर के काफिले उसने..............
तकदीर के खेल का हिस्सा बन, बचपना करने को जी करता है
जब समझ के दायरों के आगे, मासूम चाहतों का मेला सा लग जाता है..........
posted by Reetika at 11/16/2008 09:06:00 PM

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