UnxploreDimensions...
Monday, April 12, 2010
नशा ...
तुम्हारी बातों का
हुलस्ती इच्छाओं का
मेरे तुम्हारे दरमियान
सिमटे अनकहे लफ़्ज़ों का
नशा ...
तुम्हारी साँसों की खुशबू का
ठन्डी छुअन का
लरजती उँगलियों का
नशा ...
जो मर कर जीया
उस पल का
जो गुज़र के भी नहीं गुज़रा
उस लम्हे का...
नशा ...
मुझको जो पूरा कर गया
उस तारुफ्फ़ का
मुक्कमल बना गया
जो हर अरमान
उस अनदेखे साथ का
नशा ...
परत दर परत
सांस लेते अरमानो का
खामोश बेखुदी का
नशा ....
जिस्म को आर पार काटती निगाह का
सिर्फ तुम्हारे होने के उस एक एहसास का
नशा ...
अब जो जीने की वजह बन गया
Saturday, April 10, 2010
एक बार फिर ...
अपना सा लगता है
जहाँ भी लगे धरती पर झुकता
ज़िन्दगी का पूरा सच लगता है
मन के सीले अंधेरों को जगमगाती
उमीदों की चमकीली रौशनी
क्यूँ सुर्ख हो जाती सपनो की
बदरंग दुनिया अनोखी
सिर्फ इक हंसी की झड़ी
कर देती ...
एहसासों की ज़मीं गीली
इक नया अरमां होने लगता
हर पल पर काबिज़
क्यूँ हो जाता एक बार फिर से एतबार
हो कर दिल से आजिज़ ...