UnxploreDimensions...
Wednesday, March 31, 2010
सवाल सिरफिरा सा...
बेलगाम मोहब्बतें
क्या वाकई होती है अलेहदा ?
पिघलती, सिमटती ...
यादों की चिलमन के परे
ज़ेहन में रिसते हैं
वक़्त के हमशक्ल बेनाम कतरे
सफहा सफहा जिंदा सा लगता है
हर जज्बा एक सा ही तो लगता है
पर...
मोहब्बत तो शायद सिर्फ एक बार ही होती है
चाहतों का क्या है ...
हर पल, हर पहर
गर्म जज्बातों का मुल्लमा चढ़ाये
यकबयक टकरा ही जाती है
आज फिर वो ही पुराना मसला है
दबा, सिसका, थमा सा सिलसिला है
सिर्फ चाहत है या ये है मोहब्बत
सवाल सिरफिरा सा
ज़िन्दगी के आईने में
मुंह बाए खड़ा है ...
Thursday, March 25, 2010
जानी पहचानी तलाश ...
हर सुनहरी सी सुबह में, फ़ैल जाता है
और गुनगुनी सी सांसें फिर से
प्यार की ठंडी छांह तलाशने लग जाती है ...
अपनी ही उमीदों की उंगलियाँ
मुस्तकबिल सिहरा देती है
और तमन्नाओ की मसहरी लगा ज़िन्दगी
एक अजीब से नशे में डूबी रहती है ...
अच्छी भी और बुरी भी ...
खुद से झूझती, बेपरवाह पलों की लडियां
बस गुज़रती नहीं .......
वक़्त के गलियारे आबाद करती
तन्हाई के स्याह रंग में सजा जाती है ...