UnxploreDimensions...
Saturday, February 20, 2010
और इश्क बढ़ता रहा ...
उम्र नीचे सदियों से बहती रही
बूंदों से मिटटी का इश्क बढ़ता रहा
और मैं सोंधे से जिस्म को समेटे
आहटों की खलिश महसूस करती रही
खुली आँखें जज्बों का तलिस्म सजाती रही
और उम्मीद की महफ़िल में ...
सुनहरे मुस्तकब्बिल की ताबीर होती रही
सहमा सा मेरा आसमान ख़ामोशी से गूंजता रहा
और मैं बालिश्तों से ज़िन्दगी नापती रही ...
Saturday, February 13, 2010
तुम, जो ऐसा करते हो तो ....
बेपरवाह से जवाब ...
एक ठंडी सी दूरी ....
बनाते तुम , जो ऐसा करते हो तो
मन में उभरते जज्बे
सिहर से जाते हें
उजली सी चाहतें
घबराहट की स्याही ओढ़
तन्हाई की गोद में दुबक जाती है
बेवजह उलज्हन दबे पाँव
सपनो की क्यारी रौंदती
जबरन कहीं से आ ही जाती है
फिर तुम, जो ऐसा करते हो
कि सिर्फ एक मीठे बोल से
मेरा हाँथ पकड़
सुर्ख रास्तों पर ले चलते हो
और महज़ एक बोल की रेशम डोर
सभी खौफ, सभी उलझन परे रख
मेरी तुम्हारी सांसें बाँध
एतबार के नए मकाम तलाशने चल देती है