UnxploreDimensions...
Sunday, March 30, 2008
कैसा है यह असर....
कुछ महके से लफ्ज़ बन ,
कागज़ पर बिखर जाती है .......................
इक छोटी सी मुस्कान फ़ेंक,
चंदसफ्हों में अरमान जवान उठते हैं....................
उँगलियों की बेनाम हरकतों पर,
अनकही बातें लहक जाती है ....................
उमंगो पर आ जाता शबाब,
जब हँसी उसकी दबे पाँव मन को मेरे गुदगुदा जाती है ............
मीलों दूर बैठी उसकी शिद्दत,
यह कैसा असर कर जाती है ............................
Tuesday, March 04, 2008
उफ़ ये मैं, मेरी उम्मीद, और तुम....
छूट-ते हांथों की सिहरन ....
फूटने को बेताब सीने में गर्म लावा......
तुम्हारे हांथों से , ज़िंदगी का सिरा पकड़े
ढूँढती अपने अरमानो का आसमान
उफ्फ्फ़ यह मैं, मेरी उम्मीद .... और तुम...
काँधों पर तुम्हारे सूखता मेरी आखों का पानी
हँसी में छिपे रिश्ते बेमानी
बदहवासी का आलम
काबिज़ है जेहन पर इस कदर
मयस्सर नही सुकून के दो पल
दो गज ज़मीन के नीचे भी.....