UnxploreDimensions...
Friday, January 18, 2008
पता नही .......
दिखता है कभी, पता नही
रह गया तुम में कुछ, पता नही
या मुझ में कुछ, पता नही
बहता है कहीं, पता नही
जम सा जाता अक्सर, पता नही
वक़्त की झिर्रियों से झांकता, पता नही
या यूं मुहँ बाए देखना, पता नही
आंखों से झलकता, पता नही
होंठो पे अटका, पता नही
खींच गया दिल पे, पता नही
यादों के दरख्त हैं गडे, पता नही
बहलता है मन, पता नही
उड़ गया छू से कोई, पता नही
है बाक़ी छूट गया कुछ, पता नही
Friday, January 04, 2008
इक और सिलसिला...
सिरा एक खतम हुआ .... की दूसरा उलझ गया ....
तेरी हंसी में घुली वो नमकीन याद
कर चली मेरे माजी को आबाद
यह पल जो मेरा हुआ करता था
दुश्वार हो चला अब काटना
बेकरारी इतनी बढ़ी की
मुस्ताक्क्बिल मेरा बियाबान हो गया
फिर वो ही ज़िंदगी हमारी
नकाब पोश हो हम ही से गुज़र गयी
किस्मत ने क्या खूब
मेरी उलझनों का तमाशा बना दिया