UnxploreDimensions...
Sunday, June 23, 2013
चहलकदमी...
चुप चाप सीने में
चहलकदमी करती हैं
हर आहट पे
सिहर सी जाती है ...
किस बात का खौफ
इस कदर है चस्पा ...
मुस्कुराती हैं तो
डर की परचाहियाँ
उसे भी स्याह कर जाती हैं ...
दिल की खिड़कियाँ खोलने में
अब होती है दिक्कत ..
की जाने कब कहाँ से
कमबख्त हवा भी
हो जाए मुख्बिर…
ख़ुलूस की पेशानी पे
अब संजीदा शबनम चमकती है ...
लगे हैं खोने .....
कुछ नए अफसाने ...
कुछ नए उल्हाने ...
उलझनों के ये कैसे
ताने बाने…
सिरे उल्हास के
हैं छूटते जाते
उम्मीद की हथेलियों
में भरने लगते
अजनबी पसीने ...
ख्वोअबों के रंग अब
लगे हैं खोने ...