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Friday, November 30, 2007

Aaina !!

लबों पर है जमा सा कुछ,
आँखों में भर के कुछ
उमीदों की सुनहरी लों को पकड़,
जी रही कबसे ज़िन्दगी कमबख्त !!
सपनो की चाशनी भर के दिल में,
हर रात पिया करती है
चांदनी का नूर खिलता रहा,
मन के दरीचे आबाद होते रहे,
कभी कम कभी ज्यादा .............
घुलता रहा सब कुछ, रिश्ता रहा कहीं कुछ.......
पर सहमे से एक लम्हे में,
एक बार ठहर कर जो,
ज़िन्दगी ने पूच्छा की कैसी कट रही है ?
लफ्ज़ सारे स्याह हुए
अरमान सारे तबाह हुए
नासमझी के ठन्डे लब
ज़खोम को चूमते गए, पर....
हकीकत ने पैर रख
उनमें जान फूँक दी !!
posted by Reetika at 11/30/2007 04:39:00 PM

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