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Thursday, October 25, 2007

सिर्फ एक हक................

ईस दुनिया की भीड़ में खुद को तनहा पाती हूँ,
ज़िंदगी में एक फैसला लेने का हक चाहती हूँ..........
जानती हूँ, चंद मिसरे हैं चुनने के लिए,
पर उन्ही से ज़िंदगी को बदलने का हौसला चाहती हूँ..........
हक तुम्हे पाने का,
हक टूट कर तुम्हे चाहने का...........

फैसलों की तामील हो या न हो ,
पर पल भर की बारिश से भीगना चाहती हूँ...............
शाम ओ सहर मेरी, तेरी आहट से महके
बस यह इल्तिजा खुदा से करना चाहती हूँ............
बाहों के समंदर में तेरी, बन के मौज कोई,
एक मुक़द्दस साहिल तलाशना चाहती हूँ...............
posted by Reetika at 10/25/2007 06:31:00 PM

1 Comments:

khush naseeb hai woh jisko aap pyaar karen
har din aur har raat pyar ka izhaar karen
woh chahe kadam aage badayei ya na badayei
aap har maur par uska intezaar karen
nahin hota nasseb har shaks ka itna bulund
ki pyar ka khuda khud uske pyar ki darkar karey
jannat na ban jaati jindagi agar hume koi yuin hi pyar karey !!!

October 25, 2007 8:03 PM  

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