UnxploreDimensions...
Wednesday, October 17, 2007
तजुर्बा तेरी मोहब्बत का...!!!
मैं बेवफाई पे नही लिखता,
और मैं सोचता हूँ की मैं उनकी रुसवाई पे नही लिखता
खुद अपने से ज्यादा बुरा, जमाने में कौन है ??
मैं इसलिए औरों की बुराई पे नही लिखता
'कुछ तो आदत से मजबूर हैं
कुछ फितरत की पसंद है ,
ज़ख्म कितने भी गहरे हों
मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता....
दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्जाम लगाती है,
वरना क्या बात?? की मैं कुछ अपनी सफाई पे नही लिखता
शान-ये-अमीरी पे करू कुछ अरज
मगर एक रुकावट है,
मेरे उसूलों की ........ मेरे गुनाहों की ...........
कमाई पे नही लिखता
"उसकी" ताकत का नशा
मन्त्र और कलमे में बराबर है
मेरे दोस्तों मैं मजहब की,
लड़ाई पे नही लिखता
''समंदर को परखने का मेरा, नजरिया ही अलग है यारों
मिजाजों पे लिखता हूँ मैं उसकी गहराई पे नही लिखता
''पराये दर्द को , मैं गजलों में महसूस करता हूँ ,
सच है मैं शजर से फल की, जुदाई पे नही लिखता
'तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'
ना लिखने की वजह बस ये की
'शायर' इश्क में खुद अपनी, तबाही पे नही लिखता...!!!"
- राघवेन्द्र बाजपई
कहीं पडा इसको... और उतर गया गहरे कहीं तक....... बेहतरीन और उम्दा लिखी गयी इबारत है....
4 Comments:
मैं तो यही समझता था कि seetest songs are those that tell of saddest thoughts.
wow!!!!
voh shabd to mann ki gahrayio ko chu gaye....and last line was superb..
"shayar ishq me khud apni tabahi pe nahi likhta.."
well, got to know about yoru blog through orkut.
Take care
Mona
arrey ! hum kaise anjan rahe ab tak es blog se... hmmm
give me some time to read ur previous posts ...:)
oh teri ........ itna complicated. Life bari simple hai yaar, itni complicate mat karo.
Very Well Written indeed and what use of words. Great collection Reetika ..... keep it up !!
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