UnxploreDimensions...
Monday, October 15, 2007
Hai janam ka jo yeh rishta to badalta kyun hai ?
उसके सीने में समां जाये, हमारी धड़कन...........
इतनी कुरबत है तो फिर फासला इतना क्यों है ?
तुम मस्सरत का कहो, या इसे गम का रिश्ता,
कहते हैं प्यार का रिश्ता है, जनम का रिश्ता...............
है जनम का जो येह रिश्ता तो बदलता क्यों है ?
कुछ ऐसे ही सवाल आज नज़रों के सामने से गुज़र गए, जिनके जवाब शायद सिर्फ और सिर्फ वक़्त के पास हैं. जिन्दगी ने भी अजीब रंग दिखाए हैं.... हर रोज़ एक दिन पिछले तजुर्बे पर स्याही फेर, एक नया सबक पदाती है और हमको पढना पड़ता है। सिली ज़बान के पीछे कुछ लफ्ज़ तड़पते हैं, पर इक घुटी सी उम्मीद के इंतज़ार में ऐसे ही जिए जाते है। पाकर भी कुछ हाथ में ना होने का सा एहसास है, है सब कुछ अपना फिर भी हक मिलने के दरमियान एक बड़ी दिल में चुभी फांस है। सहारों के बदौलत चद्ती बेल के मुस्त्क्बिल भी एक अनजाने दर के साए में ही जीता है, तो सोचा इनको ही हटा दें और देखें कब तक और कैसे बढती है यह बेल। और वोह भी एक ऎसी बेल जो ना फलती है ना फूलती................. बस एक अमर बेल सी चिपकी अरमानों के ख़ून से सींचती जाती है और एक दिन आखिरकार सब कुछ खतम कर देती है।
1 Comments:
वक्त तो सबसे बलवान है, बहुत कुछ सिखाता है।
हिन्दी में और भी लिखिये।
Post a Comment
<< Home