UnxploreDimensions...

Wednesday, November 28, 2007

Bas aur nahin....

काश की मेरे सब्र से
ज़मीन का कलेजा फट जाए
की अब बस....
बस और नहीं..........
आंखों के पानी से
जलने लगे है नासूर कई
की बह जाने दो उन्हें
तोड़ सारे बाँध कोई
तुम्हारे छूए का रंग लगता है
छूटेगा छूने से तुम्हारे ही कभी
खुशबू जाती नही जिस्म से क्यूंकि
हसरतों के गुंचे मुरझाये ही नही
जेहन के गलियारों में टेहेलाते फिरते
एहसान जाता-ते दिख जाते तुम अक्सर कहीं
उम्मीद की मुंडेर पर अटका
रीता मन मेरा,
फिर उलझ जाता बातों में तेरी
posted by Reetika at 11/28/2007 12:33:00 PM

1 Comments:

Spontaneous and poignant...i witnessed the creation... but cdn't do anything abt the pain ! God bless this soul !

November 28, 2007 3:29 PM  

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