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Wednesday, October 31, 2007

Daayre...........

दायरे दरमियाँ है बहुत
शक की सिसकियाँ सुनती हूँ बहुत
शिकवा किस से करूं जब
खुद से हारी हूँ मैं
अचानक लगता की पा लिया सभी कुछ

फिर होता बंद मुट्ठी में खाली हवा का एहसास
पंख लग जाते चाहतों के
पर कट जाते वह अनसुलझे सवालों से

इख्तियार नही मुस्तक्बिल के चेहरे पर
पर देखती हूँ आज में कहीं इमान का असर......



posted by Reetika at 10/31/2007 06:40:00 PM

1 Comments:

nice,,,,,,,,,,

January 13, 2010 8:59 PM  

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