UnxploreDimensions...
Friday, November 16, 2007
एक जद्दो- जहद ............
रहेगा प्यार तेरा साथ ज़िंदगी बनकर
यह और बात ज़िंदगी मेरी वफ़ा न करे
यह ठीक है नही मरता कोई जुदाई में
खुदा किसी से किसी को मगर जुदा न करे
ज़माना देख चुका है , परख चुका है उसे
क़तील जान से जाये पर इल्तजा न करे
कभी कभी सपना लगता है , कभी यह सब अपना लगता है... तुम समझाओ मन को , क्या समझाऊं.... ? यह सुनते सुनते न जाने किस दुनिया में खो गयी...... लगा कितना सच है यह... हकीकत मेरी किस हद तक सही बयां कर गया इन लफ्जों में.... सब अपने अपने हिस्से की ज़िंदगी जीते हैं , कोई किसी दुसरे के हिस्से को नही जी सकता, चाह कर भी नही। कुछ हवाएं जब मन छूकर गुज़रती है तो कुछ बेनाम यादें साथ बहा लाती हैं । लगता है की कुछ छूट गया गया कहीं.... धुला धुला सा लगता है मन, फिर भी हसीं से गुनाहों के दाग छूट ही गए हैं उस पर कहीं न कहीं....... तकदीर किसी धुंधले से मोड़ पा रले जा कर खड़ा कर देती है और फिर इक नया सवाल पूछ्ती है की अब क्या ?? उसपर मुसीबत यह की सवाल के जवाब में सवाल ही हैं... पूछना चाहती हूँ , पर पूछूगीं नही... यह भी एक अजीब सी जिद है..... एक ज़बरदस्त कवायद है ... एक जद्दो- जहद है ..... और ज़िंदगी समझती है की इसको कोई फरक ही नही पड़ता..................... और इक भुलावे में आगे बढ़ जाती है..... और मैं, पीछे कड़ी सोचती हूँ की ग़लतफहमी में मैं खुद जी रही हूँ या यह ज़िंदगी ???
2 Comments:
Kaun hai jo sapnon mein aaya,
Kaun hai jo dil mein samaya,
Lo jhuk gaya aasman bhi...Hope it does !
behtreen rachna....
Post a Comment
<< Home