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Wednesday, October 03, 2007
Woh Har Baat......
बात से निकली, फिर रह गयी बात.........
उसने कुछ और हमने कुछ कही बात,
लफ्जों में गम हो गयी असली बात..................
होसलों के किनारे सुनहरी कर चली बात,
उम्मीद का दमन ओढ़ फिर दुल्हन बनी बात...........
अनकहे जवाबों में मेरे,
ढून्दी उसने अपने मतलब की बात,
काश-म-काश में उसके दिल की,
फिर उलझ गयी बात..................
लबों पर जो सिल गयी बात,
आंखों से फिर टपक चली बात..........
रूह में मेरे जो उतर गयी बात,
नासमझी में रुसवा हो गयी हर वह बात..........
चुनी उसने मतलब की हर बात,
असल पर जब आयी, तो बदल गयी हर बात...........
चंद लम्हों के लिए बनी, और फिर बिगड़ गयी बात............
शिकवे- शिक़ायत की बात,
रूठने - मनाने की बात,
मोह्हबत की बात, नाराज़गी की बात..................
मुस्कुरा कर जो देख लिया उसने,
ढाई अक्षर में सिमट गयी मेरी हर बात................
सुन रही हूँ उसके दिल में बसे खुदा की हर बात,
न टपकती आंखों से, अगर यह होती सिर्फ बातों की बात...
1 Comments:
kuch dard aise hote hain jo...
bin chhuye bhi chhu jaate hain
hansti ankhon ko rulatey hain
aur sirf dua ban kar hi labon par aatey hain
unki ankhon mein jhalktey ansoon ..
apni bebasi ka karva ahsaas dilatey hain
woh pal yugantar se bhi lambey ho jaatey hain
kuch farishtey na jaane kyuon dharti par chale aatey hain !
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