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Monday, July 20, 2009

छू गए तुम...

भोर की पहली मुस्कान, और तुम
रात की अधखुली आँखें, और तुम
तपती दोपहर, और भीगे से तुम
बातों में उलझी लटे, सुल्झाते तुम
बिन कारण हँसी, चुहलबाजी करते तुम
बेवजह नाराज़गी की शिकन, मीठा एक बोसा तुम
खामोश लब .... जेहन में बरसते तुम
सुर्ख रूह खयालो की ... रंग गए तुम
अरमानो की देह नम... छू गए तुम
खुशबू से सराबोर सपने ... भिगो गए तुम

posted by Reetika at 7/20/2009 03:20:00 PM

2 Comments:

OMG!!!!!!!!

wad a luvly poemmmmmmmm..........


rang gaye tum.............. bheego gaye tum............ beautiful feelings......... concatenated.........

August 30, 2009 2:05 PM  

एहसास और तुकबन्दी दोनो में श्रेष्ठ कविता है

November 29, 2009 2:18 AM  

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