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Thursday, February 05, 2009

एक मुलाकात.........

तुम्हारे साथ चलते चलते यूँ ही
किसी रोज जिन्दगी से मुलाक़ात हो गयी
भीगे बालों के पीछे
चहकती उन आंखों से
दो चार बात हो गयी
यादों के झरते पत्ते
समेटे वक्त भी कहीं ठिटक गया
चाहतों के दुप्पटे का कोना भी
उस धुली सी हँसी में अटक गया
मन की चुहल बाजियां
उंगली थामे तुम्हारी
उकसाती है मुझे
रात की चांदनी में घुली तुम्हारी साँसे
महका जाती सपनो के गलियारे
खोल जज्बों के झरोखे,
बिखर जाता यह चाँद मेरे भीतर ............
गुनगुनता सा खुमार
काबिज़ हो जाता मुझ पर
और फ़िर......अलसाई सी मैं

सिल जाती कहीं...........
तुम्हारे उजास से खिल कर
posted by Reetika at 2/05/2009 02:29:00 PM

15 Comments:

तुम्हारे साथ चलते चलते यूँ ही
किसी रोज जिन्दगी से मुलाक़ात हो गयी
भीगे बालों के पीछे
चहकती उन आंखों से
दो चार बात हो गयी
यादों के झरते पत्ते
समेटे वक्त भी कहीं ठिटक गया
चाहतों के दुप्पटे का कोना भी
उस धुली सी हँसी में अटक गया

वर्णन बहुत ही सुंदर बन पड़ा है।

February 05, 2009 10:14 PM  

Chahton ke dupatte ka kona bhee
us dhuli hansee men atak gaya
man kee chuhalbajiyan
ungalee thame tumharee
uksatee han mujhe
rat kee chandanee men ghulee tumharee sansen
mahka jatee sapanon ke galiyare............
Bahut hee romantik bhavon ko kafee khoobsoorat aur sundar shabdon,achchhe shilp men likha hai apne reetika.badhai.
Hemant

February 06, 2009 1:11 AM  

चांदनी सी खूबसूरत उजली और निर्मल कविता. आखिरी पंक्तियाँ मन मोह गई.

February 06, 2009 7:15 PM  

@ Pooja,Hemant & Chopal... thanks for those encouraging words.....

February 08, 2009 12:54 AM  

भीगे बालों के पीछे उन चहकती आंखों से .... वाह जी बहुत सुंदर ....

अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

February 09, 2009 12:03 AM  

@Anil.. Shukriya..

February 09, 2009 1:50 PM  

This comment has been removed by the author.

February 09, 2009 1:50 PM  

aapne to apana blog shandar bana rakkha hai, blog par aank kya shandar lag rahi hain, aur sach maniyen aap bhi kya kubha lag rahi han.

February 09, 2009 11:20 PM  

गुनगुनता सा खुमार
काबिज़ हो जाता मुझ पर
और फ़िर......अलसाई सी मैं
सिल जाती कहीं...........
तुम्हारे उजास से खिल कर


bilkul masoom se nazm hai di.. bahut pyari si.. :)

February 11, 2009 5:55 PM  

@ Sonu.. abhi bhi maasomiyat baaki hai kisi kone mein mere yeh dekh kar hairat ho rahi hai....:-)

February 11, 2009 7:54 PM  

खोल जज्बों के झरोखे,
बिखर जाता यह चाँद मेरे भीतर ............

सलाम-ए-इश्क फिल्म में से गोविंदा का एक डायलाग याद आ रहा है शब्द नहीं फिर भी...... वाह-वाह!

February 12, 2009 6:17 PM  

अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर. बहुत अच्छी कोशिश है..यूँ ही जारी रखें. आभार.

February 13, 2009 3:53 PM  

@ saraswatlok and Rajeev..Thanks

February 14, 2009 3:07 PM  

दिल को छू गई आपकी कविता..कभी मेरे ब्लॉग पर भी आयें स्वागत है आपका

May 08, 2009 11:49 PM  

चाहतों के दुप्पटे का कोना भी
उस धुली सी हँसी में अटक गया
bahut khoob.

June 18, 2009 6:10 PM  

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