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Friday, January 16, 2009

मन के भंवर उत्थ्ले ............

सवालों के दरवाज़े खुले ,
जवाबों के आसमान सूने,
यादों के खिंचते धागे ,
इन सभी में उलझी मैं............
तक रही हूँ कबसे
तुम्हे लपेटे ..............
जोड़े घटाए ...............
सभी लेन देन ...........
वो पल बेतुके ..................
मन के भंवर उत्थ्ले .........
हसरतों के मौसम पिघले ,
उमीदों के सावन रहे बरसते ..............
लो फ़िर इक
हँसी के साए में तुम्हारे
बह चले सारे शिकवे .................
posted by Reetika at 1/16/2009 01:29:00 AM

11 Comments:

Ritika ji,
Apne bahut kam ,saral shabdon men apne man kee bahut dher saree baten kah dali hain is kavita men.Badhai.
Hemant Kumar

January 16, 2009 3:16 AM  

kafi accha likhti hain aap. aakhri ke 2 lines bohot sundar hain.

January 17, 2009 7:27 PM  

@ Hemant and Shekhar ... thanks for those encouraging words....

January 17, 2009 11:30 PM  

बहुत सुंदर भावनाएं हैं रिश्तों का ऐसा ही अनोखा जोड़-घटाव होता है.......
बहुत ही अच्छी तरहां से पेश किया ...
अच्छा लगा आपकी इस रचना को पढ़ना......

अक्षय-मन

January 18, 2009 11:19 PM  

namaste!
achhi kavita hain!look at the length of the peice!and look at the feelings it portrays,.

January 20, 2009 6:19 PM  

@ Frozenwell & Akshay Man... Thanks a ton..

January 20, 2009 8:24 PM  

क्या बात है.......... रीतिका जी, सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकारें..

January 21, 2009 12:24 AM  

lo ! phir ik hansi ke saaye meiN, tumhare beh chale sare shikve...!!

bahot hi umda nazm..
mn ki saari bhaavnaaoN ko jaise 'kuchh kehte hue shabd' de diye aapne....
badhaaee....!!
---MUFLIS---

January 21, 2009 1:08 AM  

@ Yogendra, Muflis ...
tahe dil se shukriya..

January 21, 2009 6:43 PM  

रितिका जी,आज आपके ब्लॉग पर घूमा-भटका......और कहने को बहुत कुछ मन में आया.........मगर आज इस वक्त तो भागा-भागा सा आया हूँ....खाना खाते हुए ही आपकी रचनाएं भी देखी.........समयाभाव के कारण हर वक्त एक साथ दो-दो काम करता रहता हूँ.......बहुत स्पीड में हूँ........वाटक आगे बढ़ गया.....जिन्दगी पीछे छूट गई.......टाईम मेकअप ही नही हो पा रहा.......आपकी सारी रचनाये अच्छी हैं.........कुछ तो बहुत ही अच्छी......कुछ मद्दम-मद्दम-सी और कुछ ठीक-ठाक-सी......और ये तो सबके ही साथ होता है.........मैंने कुछ नया तो नहीं कहा .......फ़िर भी बाकी बातें.......अगली बार.......!!

January 23, 2009 7:18 PM  

बेहद प्यारा लिखा है आपने...हँसी के साये में बह गए सरे शिकवे, प्यार वाकई ऐसा ही तो होता है. :)

February 06, 2009 7:17 PM  

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