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Tuesday, December 30, 2008

फ़िर भी एक उम्मीद...........

खलिश है
कसमसाहट है
बेचैनी है
खो जाने का एहसास है
आँखों का पानी है
दीवानापन है
बे-करारी है
मचलता सावन है
चाँद है
स्याह होंसले हैं
शाम है
फ़िर भी................
एक उम्मीद है
बेहूदी सी


posted by Reetika at 12/30/2008 07:53:00 PM

10 Comments:

शब्दों को बहुत अच्छी तरह से पिरोया है आपने......खलिश, कसमसाहट, खोने का अहसास, आँख में पानी भी ले आयीं, लाइए आपकी मर्जी| चाँद के साथ स्याह हौसले को रखना बड़ा unique लगा| मुझे नही पता उम्मीद कैसी है वरना टिप्पणी कर देते की आपने इसे बेहूदा क्यूँ कहा|!

December 30, 2008 9:06 PM  

@ Shekhar... apni marzi se kahan jeete hain hum ... bas ek behti nadi hai aur bahe ja rahe hain hum..

December 30, 2008 11:01 PM  

बहुत सुन्दर काव्य, नववर्ष की बहुत-बहुत बधाई, नववर्ष आपके लिए कल्याणकारी हो।

December 31, 2008 4:37 AM  

@ Vinay.. Nav VArsh ki aapko bhi shubhkaamnaayein..

December 31, 2008 2:54 PM  

This comment has been removed by the author.

December 31, 2008 2:54 PM  

nice blog page. i really love this eye which is shown in your page..

but feel that some thing missing in this poem as well as your life too..

so in this coming year............

khuda aap ki sari manokamnae poori kare....

December 31, 2008 8:21 PM  

@ Tapashwani.. may I know what is that missing ??

January 03, 2009 2:15 PM  

चंद चुने हुए शब्द बना गए एक सुंदर कविता...

-आप को और परिवार में सभी को नए साल की ढेर सारी शुभकामनायें!

January 04, 2009 5:22 AM  

आपके पुराने पोस्ट से गुजरते हुए
फ़िर भी एक उम्मीद...........
पर ठहर गया.
अच्छी -- खूबसूरत रचना

July 08, 2009 9:28 PM  

bahut sundar bahut bahut achcha...

February 13, 2010 10:17 PM  

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