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Thursday, February 19, 2009

लम्हों का क़र्ज़....

किताबों के पन्नों में कुछ सूखे फूल ..................
सुस्ताती दोपहर में उबासी लेते पल .....................

बहाने से कुछ याद करती ,वक्त के खाली हर्फों को रंगती .......

अंजुरी में भरे उन लम्हों से खेलती .......

फ़िर से तुमको जीना चाहती , फ़िर से जी कर मरना चाहती
बादलों के उन टुकडों में, अपना ही हिस्सा खोना चाहती

इस बेमिसाल हार में जब जीत के सुख का रंग मिल ज़ाता

दुखती रगों में यादों का रस घुल जाता

आंखों की सीलन से , मन की गीलन ने ...........

कुछ जज्बे जिंदा रह गए

आंच से जिनकी आज भी दिलके कोने सुलग गए .....

साँस लेते उन लम्हों की खुशबू से

बुझे जेहन के मौसम बहक गए .............

posted by Reetika at 2/19/2009 07:24:00 PM

1 Comments:

kitabon ke pannon men kuchh sookhe fool
sustatee dopahar men ubasee lete pal.......

Reetika,
apne is kavita men bahut achchhe bimbon ka prayog kiya hai.pooree kavita achchhee lagee .apko to apnee kavitayen hindi kee achchhee patrikaon men bhee bhejanee chahiye.
HemantKumar

February 20, 2009 1:07 PM  

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