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Wednesday, January 07, 2009

पनाह मेरी............

बातें तमाम
मुझी में गुँथ गयी
एक नज़र तुम्हारी
कहीं धीरे से घर कर गयी
कवायद यह की
ज़िन्दगी क्या चाहे हमसे
और हम क्या चाहे ज़िन्दगी से
हसरतों के लब तो जैसे
तुमने सी ही दिए
तुम्हे पाऊं या .............
छोड़ दूँ हमेशा के लिये
आवारा सा ...... मन की गलियों में
ज़रा सी जगह बचा रखी थी मैंने
अपने लिये .... पर ...........
तस्सवुर के उस कोने को भी
आबाद कर तुमने
छीन ली यह रिसती पनाह मेरी .....
posted by Reetika at 1/07/2009 03:24:00 PM

10 Comments:

Bouth he aacha post kiyaa aapne keep it up

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January 07, 2009 3:59 PM  

"मन की गलियों में
ज़रा सी जगह बचा रखी थी मैंने"

"तस्सवुए के उस कोने को भी
आबाद कर तुमने
छीन ली यह रिसती पनाह मेरी ....."

सोचने की बात यह है की मन में बाकी जगह कहाँ गई? जरा सी जगह ही क्यूँ बची थी| अब जिस चीज की ज्यादा हो तो लोग जल्दी करेंगे ही!

आपकी शैली पसंद है मुझे, आप कुछ कहती हैं, और पढने वाला सोचने पर मजबूर हो जाता है|

January 07, 2009 5:33 PM  

Jab koi is kadar zindagi main sama jaye... To halaat kuch aaise hi ho jaate hain... Dimag ko yeah samjh nahi aata ki dil kya chahata hain... Aur dil... woh to aaise hi nakaam ho jaata hain :)

January 07, 2009 6:26 PM  

@ Shashwat ... man mein jageh bas bach gayi thi... jaanboojh ke chodi nahi thi....

@ Shekhar (I walk alone).... mere hisaab se zindagi mein kisi ke samaane ke baad hi aise halaat paida ho yeh zaroori to nahi... yeh kisi ki ibteda mein bhi ho sakta hai ..;-)

January 07, 2009 7:19 PM  

अच्छी कविता

January 08, 2009 2:23 AM  

हसरतों के लब तो जैसे
तुमने सी ही दिए
तुम्हे पाऊं या .............
wah bahut achchey Ritika!
achchee kavita hai.

January 11, 2009 3:16 PM  

Reetika ji,
Bahut bhavpoorna kavitayen hain apkee.ek nai tajgee,samvednayen...sabse badh kar saralta..achchhee kavitaon ke liye badhai.
Hemant Kumar

January 14, 2009 2:04 AM  

@ Alpna.. Shukria

@ Hemant ... bas ankahi bhaavnaaon ko ukarne ki koshish hai kaagaz par...

January 14, 2009 5:47 PM  

रितिकाजी।

आबाद कर तुमने
छीन ली यह रिसती पनाह मेरी ...

बहुत खुब॥॥।.

January 15, 2009 7:56 PM  

इसी को तो बेपनाह मुहब्बत कहते हैं...क्यों न छीने पनाह, प्यार करके भी मैं बचा रह जाता तो अधूरा होता न... आख़िर अधूरा भी कोई होना होता है.

February 06, 2009 7:20 PM  

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