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Thursday, December 27, 2007

ख्वाबो का तलिस्म...........

धोखा है........ फरेब है...
ख्वाबो का तलिस्म है.......
तेरे होने न होने का असर,
फर्क उसमें है शायद तिनका भर........
बेखुदी है.... बदहवासी है.......

उम्मीदों की चांदनी है.........
पर कोने में एक स्याह परछाई है.......
झूठ से सराबोर,
नर्म दुनियादारी का मेला है.....
जिसमें खेलता मन, हो चला कसैला है......
अरमानों की धमनियों में दौडती,
गर्म शिद्दत है ...आस है.........
बह चले जो नसों से
वो दर्द है... आह है....
तमाम उम्र बसर हुई,जिसकी चाह में.........
वजूद उसका महज इक धोखा है....
सीने में जमें से चंद पल है,
वक्त के आईने में बिखरा सिर्फ,
मेरी सोच का उजड़ा समान है......
posted by Reetika at 12/27/2007 04:23:00 PM

3 Comments:

machli ko bhi kabhi pyaas lagti hogi,
hawaon mein udne ki aas lagti hogi…
udte parinde apna chehra, jab paani mein takte honge,
wo bhi paani mein tairne ki aas rakhte honge…
duniya gol nahin hai yeh mujhe hai yakin,
abhi kayin kone gol hone ko taraste honge…
sikko ki jhankar chudiyon ki khankhanahat se jalti hogi,
raat asmaan ki kisi ankh ke kajal par marti hogi,
raat ka suraj bhi ankh ki raushni se jalta hoga,

lakire mathe ki khuda nahin yeh mujhe hai yakin,
wo bhi buland hoslo par jhukta hoga…

December 27, 2007 6:26 PM  

Kavi / shayaar ne apne dil ka dard likh daala hai..yeh uskey dil se nikle aawaaz hai!!!!

January 03, 2008 5:01 PM  

तमाम उम्र बसर हुई,जिसकी चाह में.........
वजूद उसका महज इक धोखा है....
सीने में जमें से चंद पल है,
वक्त के आईने में बिखरा सिर्फ,
मेरी सोच का उजड़ा समान है......

really nice...

August 03, 2009 11:39 PM  

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