UnxploreDimensions...
Monday, February 16, 2015
यह बुझती रंगीनियाँ ...
तुम्हारे भेजे हुए गुलाब
रखें हैं सिरहाने मेरे
हर पंखुरी से रिस्ता
दूरी का सीसा
महकाता हैं हर सांस
विसाल ऐ एहसास
हर रंग में ढले हैं
बेहिस जज़्बात
हर करवट में लिपटे
बेखुदी से तर
तुम्हारे अलफ़ाज़
ढून्ढ रही हूँ बेलौस सी
अल्हड सरगोशियाँ
आओगे न तुम
बुझने से पहले, यह रंगीनियां ?
6 Comments:
वाह, क्या बात है.
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प्यार के जज्बातों के सुन्दर प्रस्फुटन ...
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर .....
हार्दिक शुभकामनायें!
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प्रशंसनीय
सुन्दर कविता !
हिंदीकुंज
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