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Monday, February 16, 2015

यह बुझती रंगीनियाँ ...


तुम्हारे भेजे हुए गुलाब 
रखें हैं सिरहाने मेरे 
 हर पंखुरी से रिस्ता 
दूरी का सीसा
महकाता  हैं  हर सांस
विसाल ऐ एहसास 
हर रंग में ढले हैं 
बेहिस  जज़्बात 
हर करवट में लिपटे 
बेखुदी से तर 
तुम्हारे अलफ़ाज़ 
ढून्ढ रही हूँ बेलौस सी 
 अल्हड सरगोशियाँ 
आओगे न तुम 
बुझने से पहले, यह रंगीनियां ?

posted by Reetika at 2/16/2015 11:59:00 PM

6 Comments:

वाह, क्या बात है.

February 17, 2015 5:39 PM  

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June 12, 2015 6:24 PM  

प्यार के जज्बातों के सुन्दर प्रस्फुटन ...
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर .....
हार्दिक शुभकामनायें!

July 29, 2015 2:58 PM  

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बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर .....
हार्दिक शुभकामनायें!

July 29, 2015 2:58 PM  

प्रशंसनीय

October 15, 2015 1:09 PM  

सुन्दर कविता !
हिंदीकुंज

May 10, 2016 9:42 PM  

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