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Wednesday, June 16, 2010

किश्तों में तक्सीम होती "मैं".....

खामोश सूनी  चादर
दरमियान फ़ैल  गयी
"मेरे - तुम्हारे" के बेमानी  आयाम
बेवजह खींच  गयी
भीतर गहरे कहीं जडें जमाते  ,
भरभराते  हौसले ...
सिहरते मुस्तकबिल की पेशानी पर
चमकती बेचैन रातें ...
दिन के उजाले को स्याह करते अल्फाज़
जो लबों पर हैं सदियों से जमे ...
मुक्कमल तार्रुफ़ की आस में तड़पती
रिश्तों की बानगी
अनगिनत टुकड़ों में बँटे जज़्बात
और कहीं किश्तों में  तक्सीम होती "मैं"...
posted by Reetika at 6/16/2010 04:07:00 AM

26 Comments:

अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।

June 16, 2010 4:42 AM  

वाह! क्या बात है!

June 16, 2010 8:24 AM  

लाजवाब भावमय प्रस्तुती बधाई

June 16, 2010 12:43 PM  

लाजवाब भापूर्ण प्रस्तुती बधाई

June 16, 2010 12:46 PM  

sundar shabdon ka bejod istemaal!

June 16, 2010 1:02 PM  

बहुत खूब ...मैं अनगिनत टुकड़ों में बंटी .... ज़ज़्बातों की बेलगाम उड़ान ....

June 16, 2010 4:13 PM  

Man ke manthan kee khoobasurat abhivyakti...

June 17, 2010 12:39 AM  

हर बार की तरह बेहतरीन अभिव्यक्ति।

June 17, 2010 1:09 AM  

realy very nice... और कहीं किस्तों में तक्सीम होती मैं...

June 17, 2010 3:24 PM  

ज़ज़्बातों की बेलगाम उड़ान ....
पहली बार आना हुआ पर बहुत अच्छा लगा

June 23, 2010 6:58 PM  

Last kishto mein takseem hua hai .....isliye khoobsoorat nahi hai... lekin kalam se jadoogari ki hai ye to sach hai

June 23, 2010 9:41 PM  

पढ़ कर बस आह निकली.....और इसके साथ वाह भी...बहुत खूबसूरत..

June 29, 2010 12:16 AM  

पढ़ कर बस आह निकली.....और इसके साथ वाह भी...बहुत खूबसूरत..

June 29, 2010 12:16 AM  

वाह्…………क्या बात है।

June 29, 2010 4:03 PM  

khubsurat abhivyakti......:)

June 29, 2010 4:21 PM  

ज़िन्दगी यूँ तक्सीम हो गयी
लो मैं फिर खामोश हो गयी .....

क्या कहूँ .....???

June 30, 2010 10:33 AM  

अनगिनत टुकडों में बंटो जज़बात
और कहीं रिश्तों में तक्सीम होती मै ........
वाह ।

July 08, 2010 1:42 AM  

अनगिनत टुकडों में बँटे जज़बात और
कहीं किश्तों में तक्सीम होती मै ...............
वाह !

July 08, 2010 1:45 AM  

अनगिनत टुकडों में बँटे जज़बात और
कहीं किश्तों में तक्सीम होती मै ...............
वाह !

July 08, 2010 1:45 AM  

अनगिनत टुकडों में बँटे जज़बात और
कहीं किश्तों में तक्सीम होती मै ...............
वाह !

July 08, 2010 1:45 AM  

रीतिका जी
आपके ब्लॉग पर लगी बहुत सी कविताएं अभी पढ़ी मैंने , अच्छी भावपूर्ण रचनाएं हैं आपकी ।

अनगिनत टुकड़ों में बंटे जज़्बात !
… और कहीं टुकड़ों में तक़्सीम होती मैं !


प्रस्तुत कविता सहित आपके समग्र लेखन हेतु बधाई !
स्वागत और शुभकामनाएं !!

शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइएगा …

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

August 17, 2010 7:34 PM  

Aapke blog per aakar achha laga..Yahan endrik anubhutiyon ka sundar collection hai..badhai!

August 18, 2010 11:26 PM  

kya kahu.. shabd ruk se gaye hai .. zazbaato kop piroti hui is kavita ne na jaane kya kar diya hai .. i am just speachless...

BADHAI

VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

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Reetika, Kaafi dino se kuch nahi likha.....aaj bahut dino baad aai tumhare blog par

March 10, 2011 3:53 AM  


बहुत सुन्दर



भारत की पहचान है हिंदी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः18

September 15, 2013 3:48 AM  

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