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Wednesday, July 29, 2009

खामख्वाह यूँ ही

कुछ अनकहे सवालों के जवाब
कुछ मन में फिरते पलों का हिसाब
वो पिछली रात जो बांटा था एक ख्वाब
छत के कोने में , मन के बिछोने पे
एक टुकडा उसका कहीं आंखों में अटका है
न होने पर तुम्हारे
वो ही हर बीते लम्हे का खटका है
खामख्वाह यूँ ही
दिल में लाखों हसरतें , हर शाम जलती है
उस बांटे हुए सपने के हिस्से में
तन्हाई ही बरसती है
बेखुदी की शबनम
पलकों पर फ़िर से डोल जाती है
आधी रात के उस पूरे चाँद
पर यूँ ही उदासी फ़ैल जाती है
तरसती सी चांदनी

तुम्हारी याद में फीकी सी पड़ जाती है
posted by Reetika at 7/29/2009 06:12:00 PM

23 Comments:

बेखुदी की शबनम
पलकों पर फ़िर से डोल जाती है
आधी रात के उस पूरे चाँद
पर यूँ ही उदासी फ़ैल जाती है
तरसती सी चांदनी
तुम्हारी याद में फीकी सी पड़ जाती है

Reetika ji,
Thank you for visiting my blog.You have really poured your heart felt emotions in your poems.This is the best quality of a poet or poetess.congratulations!!!!!!

July 30, 2009 5:12 PM  

वाह आपके ब्लोग पर तो ढेरों शब्दों के मोती बिखरे पडे है। किसी मोती को उठाकर देखे समझ नही आ रहा है। खैर सुन्दर ब्लोग, बेहतरीन रचनाएं।
खामख्वाह यूँ ही
दिल में लाखों हसरतें , हर शाम जलती है
बहुत ही उम्दा।
वैसे आपके कमेंट वाले शब्द भी बहुत ही बेहतरीन थे। खैर अब आना जाना लगा रहेगा।

August 03, 2009 8:10 PM  

@ Prem
@ Sushil

Shukriya ........

August 03, 2009 8:26 PM  

पलकों पर फ़िर से डोल जाती है
आधी रात के उस पूरे चाँद
पर यूँ ही उदासी फ़ैल जाती है

Its just brilliant, majestic and had touched the bottom of my heart...

August 04, 2009 1:07 PM  

@ Rajat

Thanks for those encouraging words

August 04, 2009 1:41 PM  

दिल में लाखों हसरतें हर शाम जलती हैं चाँद पर उदासी फैल जाना और चांदनी फीकी पड़ जाना ,अच्छा लगा

August 05, 2009 3:50 PM  

बेहद खूबसूरत रचना. शुभकामनाएं.

रामराम.

August 07, 2009 4:20 PM  

dil ke kitne kareeb ye nazm.. behad khoobsurat di .. :)

August 10, 2009 4:19 PM  

@ Broj Mohan, Tau Rampuria and Sonu,

Thnx for the comments

August 10, 2009 6:12 PM  

वो पिछली रात जो बांटा था एक ख्वाब
छत के कोने , मन के बिछोने पे
एक टुकडा उसका कहीं आंखों में अटका है
न होने पर तुम्हारे
वो ही हर बीते लम्हे का खटका है
खामख्वाह यूँ ही


क्या खूब कहा है.......खास तौर से इसका शीर्षक मुझे अपील करता है .....खामख्वाह यूँ ही

August 10, 2009 11:13 PM  

Doctor Saheb, aapne tareef laayak samjha.. yahi kaafi hai ! Shukriya

August 11, 2009 4:09 PM  

Beautiful Reetika!

And I think you are the right person to answer the questions asked in this post :)

http://brainbit.blogspot.com/2009/08/blog-post.html

August 14, 2009 1:19 PM  

Thanks Swati...somehow I am not able to visit this. I get a message that this page is not available. Would be great if you can mail me the correct link on tandon.reetika@gmail.com

August 15, 2009 9:18 PM  

WOW!!!!!!!!!!

सादर
महेन्द्र

August 20, 2009 5:37 PM  

hammmmmmmm....!!....udaasi to aisi hi hoti hai...hoti hai naa...iska khud ke bheetar poori tarah fail jana bhi to hamen ik kism kee abhivyakti pradaan kartaa hai....kartaa hai naa....??

August 20, 2009 6:05 PM  

@ Mahendra, thanks for visiting the blog

August 20, 2009 6:36 PM  

@ Bhootnath..shayad

August 20, 2009 6:41 PM  

बेखुदी की शबनम
पलकों पर फ़िर से डोल जाती है
Bahut khoob!:)

August 26, 2009 8:15 PM  

वो पिछली रात जो बांटा था एक ख्वाब
छत के कोने में , मन के बिछोने पे
एक टुकडा उसका कहीं आंखों में अटका है
न होने पर तुम्हारे
वो ही हर बीते लम्हे का खटका है
खामख्वाह यूँ ही ...awesome....

August 26, 2009 10:49 PM  

वो पिछली रात जो बांटा था एक ख्वाब
छत के कोने , मन के बिछोने पे
एक टुकडा उसका कहीं आंखों में अटका है
न होने पर तुम्हारे
वो ही हर बीते लम्हे का खटका है
खामख्वाह यूँ ही


bahut hi sunder......... aapki kavitayen kaafi achchi lagin......... n thanx for yo wonderful comment....

August 27, 2009 1:14 AM  

@ Alpana, Raj & Mehfuz Ali,

Shukriya zarra-nawazi ka!

August 27, 2009 1:45 PM  

Likhte rahiye.Dheron shubkamnayen.

August 27, 2009 4:23 PM  

Thanks Sandhya..

August 28, 2009 2:09 PM  

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