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Tuesday, July 21, 2009

प्यासी हूँ मैं, प्यासी रहने दो.........

कल भी तो कुछ ऐसा ही हुआ था, नींद में भी तुमने जो छुआ था
गिरते गिरते बाहों में बची , सपने पे पावँ पड़ गया
सपनो में बहने दो ...........
प्यासी हूँ मैं, प्यासी रहने दो.........

जिंदगी से कहीं छु कर निकल जाता एक एक लफ्ज़ .... धीरे धीरे रिश्तो की आंच से हर लम्हा जलने लगता है । मेरी खिड़की के चाँद को न जाने कब से तुम्हारी आदत सी हो गई है और वो भी अब थक गया है। शायद , तुम रास्ता भूल गए हो या आना ही नही चाहते, तुम बेहतर समझ सकते हो। नाज़ुक सा सफर है ... कई बार तो खयालो को जेहन में लाने से डर लगता है, की कहीं उसकी छाया से रिश्ते कुम्लाह न जाए । सपने भी ज़बरन ही आंखें खोल कर देखने लगी हूँ ... एक अजीब सा खौफ है .... खुशी है .... पर उसके साथ एक अनजानी सी चुभन भी दे दी है है तुमने। तुम्हारे खामोश तस्सवुर को छूने की कोशश भी कभी करती हूँ तो हाँथ काँप जाते हैं ...पता नही उतना हक है भी या नही ?
posted by Reetika at 7/21/2009 02:28:00 PM

7 Comments:

रीतिका जी ,
बहुत ही इमोशनल और संवेदनाओं से भरपूर शब्द चित्र लिखा है आपने ....बहुत कोमल शब्दों में ...आखिर इलाहाबाद का असर तो आयेगा ही .....
शुभकामनाएं .
हेमंत कुमार

July 22, 2009 9:53 AM  

जाग जायेगा कोई ख्वाब तो मर जायेगा ....

July 22, 2009 10:21 PM  

@ CreativeKona & Dr Anurag

Shukriya blog par aane ke liye .

July 23, 2009 2:58 PM  

kyaa baat hai....aap to poori tarah se bheege hue ho...!!

August 20, 2009 6:06 PM  

wahh !
wahH!!
Wwahh!!!
bahut pasand aaye aap ka kehne ka dhang or fir usko imandari se bayan karna sabdon mai..ek chal chitr ki mamanid sab samne nazar aata hain.........bahut subhkamnayen

October 14, 2009 11:43 AM  

@ Bhootnath .. haan bhai hum poore tareh bheege hi hue hain..:-)

@ Ujjwal ... Shukriya zarra nawazi ka !

November 15, 2009 2:58 PM  

Dard ko lafzon mein piro moti bana diya
Logo ne wah - wah kar gam aur badha diya

February 21, 2010 10:29 AM  

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