बस इक चुप
अल्फाजों के आर पार
हौसलों पे शिकन
फ़ैल चली
दूर तक पारावार
सीने में हुलस्ती
नर्म, नाज़ुक सी कोई उम्मीद
बैठ गयी... छोड़ पतवार
अल्फाजों के आर पार
हौसलों पे शिकन
फ़ैल चली
दूर तक पारावार
सीने में हुलस्ती
नर्म, नाज़ुक सी कोई उम्मीद
बैठ गयी... छोड़ पतवार
kamaal karte ho reetika ji..
ReplyDeletekitni deep thought ko aapne kalam ke raaste kaagaz pe utaara hai...
aafareen!!
bahut achhi abhivyakti
ReplyDeleteरीतिका जी, बहुत कम शब्दों में आप बहुत कूछ कह गयीं--बेहतरीन अभिव्यक्ति---और इधर बहुत लंबे समय के बाद आपकी रचना पढ़ने का मौका मिला---उम्मीद है निरन्तरता बनाये रखेंगी।
ReplyDeleteसाहित्य सृजन में नियमितता बनी रहे तो साहित्य आनंद दायक भी है और ईश आराधना भी
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसार्थक सृजन , बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें , आभारी होऊंगा.