Wednesday, March 16, 2011

बस इक चुप ...

बस इक चुप
अल्फाजों के आर पार
हौसलों पे शिकन
फ़ैल चली
दूर तक पारावार
सीने में हुलस्ती
नर्म, नाज़ुक सी कोई उम्मीद
बैठ गयी... छोड़ पतवार 

6 comments:

  1. kamaal karte ho reetika ji..
    kitni deep thought ko aapne kalam ke raaste kaagaz pe utaara hai...

    aafareen!!

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  2. रीतिका जी, बहुत कम शब्दों में आप बहुत कूछ कह गयीं--बेहतरीन अभिव्यक्ति---और इधर बहुत लंबे समय के बाद आपकी रचना पढ़ने का मौका मिला---उम्मीद है निरन्तरता बनाये रखेंगी।

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  3. साहित्य सृजन में नियमितता बनी रहे तो साहित्य आनंद दायक भी है और ईश आराधना भी

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  4. सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति.

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  5. सार्थक सृजन , बधाई.

    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें , आभारी होऊंगा.

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