भारी क़दमों से सांसें
चुप चाप सीने में
चहलकदमी करती हैं
हर आहट पे
सिहर सी जाती है ...
किस बात का खौफ
इस कदर है चस्पा ...
मुस्कुराती हैं तो
डर की परचाहियाँ
उसे भी स्याह कर जाती हैं ...
दिल की खिड़कियाँ खोलने में
अब होती है दिक्कत ..
की जाने कब कहाँ से
कमबख्त हवा भी
हो जाए मुख्बिर…
ख़ुलूस की पेशानी पे
अब संजीदा शबनम चमकती है ...
चुप चाप सीने में
चहलकदमी करती हैं
हर आहट पे
सिहर सी जाती है ...
किस बात का खौफ
इस कदर है चस्पा ...
मुस्कुराती हैं तो
डर की परचाहियाँ
उसे भी स्याह कर जाती हैं ...
दिल की खिड़कियाँ खोलने में
अब होती है दिक्कत ..
की जाने कब कहाँ से
कमबख्त हवा भी
हो जाए मुख्बिर…
ख़ुलूस की पेशानी पे
अब संजीदा शबनम चमकती है ...
बहुत खूबसूरत खयाल
ReplyDeleteऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी संजय भास्कर के लिए मूल्यवान है आभार स्वीकारें .....!
ReplyDeletegd...
ReplyDeleteशुभप्रभात
ReplyDeleteबहुत सुंदर पोस्ट
हार्दिक शुभकामनायें
sunder ....!!
ReplyDeleteबहुत खूब ... सांसों की चहल-कदमी कितने बिम्ब सजाती है ...
ReplyDeleteWell explored , very nice
ReplyDeleteWell explored, very nice
ReplyDeleteVery innovative...
ReplyDeleteVery innovative...
ReplyDeleteVery innovative....
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