Sunday, June 23, 2013

चहलकदमी...

भारी क़दमों से सांसें
चुप चाप सीने में
चहलकदमी करती हैं
हर आहट पे
सिहर सी जाती है ...
किस बात का खौफ
इस कदर है चस्पा ...
मुस्कुराती हैं तो
डर की परचाहियाँ
उसे भी स्याह कर जाती हैं ...
दिल की खिड़कियाँ खोलने में
अब होती है दिक्कत ..
की जाने कब कहाँ से
कमबख्त हवा भी
हो जाए मुख्बिर…
ख़ुलूस की पेशानी पे
अब संजीदा शबनम चमकती है ...

 

12 comments:

  1. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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  2. आपकी टिपण्णी संजय भास्कर के लिए मूल्यवान है आभार स्वीकारें .....!

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  3. शुभप्रभात
    बहुत सुंदर पोस्ट
    हार्दिक शुभकामनायें

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  4. बहुत खूब ... सांसों की चहल-कदमी कितने बिम्ब सजाती है ...

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