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Monday, February 23, 2009

मन का खेला....

जो रंग मन को भाता
खुशियों को उसी में रंग जाता
चम्पई पीला
या गहरा नीला
सब है मन का खेला
महकता रजनीगंधा
या खिलता बेला
होता सिर्फ़ आभास उसका
जो दिल पर बीछा रहता
मुस्कराहट में छिपा
एक अलग ही मौसम
सुबह के धुन्दल्के में
यूँ ही भिगो जाता
लो लौट आया फ़िर से
इक जीने का बहाना
कच्चा पक्का एक नया ही रंग
हौंसलों पे मेरे छा गया

posted by Reetika at 2/23/2009 05:44:00 PM 9 comments

Thursday, February 19, 2009

लम्हों का क़र्ज़....

किताबों के पन्नों में कुछ सूखे फूल ..................
सुस्ताती दोपहर में उबासी लेते पल .....................

बहाने से कुछ याद करती ,वक्त के खाली हर्फों को रंगती .......

अंजुरी में भरे उन लम्हों से खेलती .......

फ़िर से तुमको जीना चाहती , फ़िर से जी कर मरना चाहती
बादलों के उन टुकडों में, अपना ही हिस्सा खोना चाहती

इस बेमिसाल हार में जब जीत के सुख का रंग मिल ज़ाता

दुखती रगों में यादों का रस घुल जाता

आंखों की सीलन से , मन की गीलन ने ...........

कुछ जज्बे जिंदा रह गए

आंच से जिनकी आज भी दिलके कोने सुलग गए .....

साँस लेते उन लम्हों की खुशबू से

बुझे जेहन के मौसम बहक गए .............

posted by Reetika at 2/19/2009 07:24:00 PM 1 comments

Thursday, February 05, 2009

एक मुलाकात.........

तुम्हारे साथ चलते चलते यूँ ही
किसी रोज जिन्दगी से मुलाक़ात हो गयी
भीगे बालों के पीछे
चहकती उन आंखों से
दो चार बात हो गयी
यादों के झरते पत्ते
समेटे वक्त भी कहीं ठिटक गया
चाहतों के दुप्पटे का कोना भी
उस धुली सी हँसी में अटक गया
मन की चुहल बाजियां
उंगली थामे तुम्हारी
उकसाती है मुझे
रात की चांदनी में घुली तुम्हारी साँसे
महका जाती सपनो के गलियारे
खोल जज्बों के झरोखे,
बिखर जाता यह चाँद मेरे भीतर ............
गुनगुनता सा खुमार
काबिज़ हो जाता मुझ पर
और फ़िर......अलसाई सी मैं

सिल जाती कहीं...........
तुम्हारे उजास से खिल कर
posted by Reetika at 2/05/2009 02:29:00 PM 15 comments

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